Tuesday, November 1, 2011

सब लोग जानते हैं संगीत गा रहा हूँ... तुकाराम वर्मा


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बहते हुए पवन के ,विपरीत जा रहा हूँ | 
सब लोग जानते हैं, संगीत गा रहा हूँ || 


अनुभव मुझे हुआ है, हर वस्तु की कमी का| 
कारण समझ चुका हूँ, संतप्त आदमी का|| 
जलती हुई अवनि पर,सुख-शांति ला रहा हूँ| 


विध्वंस की कथा का, सारांश जानता हूँ | 
सब कुछ सही न मित्रों, अधिकांश जानता हूँ|| 
आज़ाद राष्ट्र में भी, भयभीत -सा रहा हूँ | 


धनशक्ति की प्रगति के,सारे पते-ठिकाने | 
सबको विदित हुए हैं, सम्बन्ध नव-पुराने || 
खुलकर दुखी जनों से, नित प्यार पा रहा हूँ| 


कल के लिए जरूरी, आधार धर रहा हूँ | 
सम्पूर्ण व्याधियों का, उपचार कर रहा हूँ|| 
पोषक प्रवल समर्थक, सद्नीति का रहा हूँ | 
सब लोग जानते हैं, संगीत गा रहा हूँ || 






प्रेषिका
गीता पंडित 

3 comments:

  1. दी !बहुत सुन्दर सभी पंक्तियाँ ,लयबद्धता ,भाव सभी उत्कृष्ट आभार !!

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  2. बहुत खूबशूरत भावों की अभिव्यक्ति ,

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