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बहते हुए पवन के ,विपरीत जा रहा हूँ |
सब लोग जानते हैं, संगीत गा रहा हूँ ||
अनुभव मुझे हुआ है, हर वस्तु की कमी का|
कारण समझ चुका हूँ, संतप्त आदमी का||
जलती हुई अवनि पर,सुख-शांति ला रहा हूँ|
विध्वंस की कथा का, सारांश जानता हूँ |
सब कुछ सही न मित्रों, अधिकांश जानता हूँ||
आज़ाद राष्ट्र में भी, भयभीत -सा रहा हूँ |
धनशक्ति की प्रगति के,सारे पते-ठिकाने |
सबको विदित हुए हैं, सम्बन्ध नव-पुराने ||
खुलकर दुखी जनों से, नित प्यार पा रहा हूँ|
कल के लिए जरूरी, आधार धर रहा हूँ |
सम्पूर्ण व्याधियों का, उपचार कर रहा हूँ||
पोषक प्रवल समर्थक, सद्नीति का रहा हूँ |
सब लोग जानते हैं, संगीत गा रहा हूँ ||
प्रेषिका
गीता पंडित
दी !बहुत सुन्दर सभी पंक्तियाँ ,लयबद्धता ,भाव सभी उत्कृष्ट आभार !!
ReplyDeleteachchhi pasand:)
ReplyDeleteबहुत खूबशूरत भावों की अभिव्यक्ति ,
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